Disease of rice

4 Important diseases of Paddy

1. धान का भूरी चित्ती रोग/ पत्र लांछन (Brown Spot)
धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे फैलाा हुआ है, खासकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु इत्यादि। भारत मे इस रोग पर पहली बार रिर्पोट चेन्नई के सुन्दरारमण (1919) द्वारा बनाई गई थी। उत्तर बिहार का यह प्रमुख रोग है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी द्वारा होता है।
Brown Spot in paddyइस रोग मे धान की फसल को बिचड़ा से लेकर दानों तक को नुकसान पहुँचाता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है। यह रोग फफॅूंद जनित है। पौधों की बढ़वार कम होती है, दाने भी प्रभावित हो जाते है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है। ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार का होता है। धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है। पत्तियों पर ये पूरी तरह से बिखरे होते है। धब्बों के बीच का हिस्सा उजला या बैंगनी रंग की होती है। बड़े धब्बों के किनारे गहरे भूरे रंग के होते है, बीच का भाग पीलापन लिए, गेंदा सफेद या घूसर रंग का हो जाता है।
उग्रावस्था मे पौधों के नीचे से ऊपर पत्तियों के अधिकांश भाग धब्बों से भर जाते है। ये धब्बें आपस मे मिलकर बड़े हो जाते है, और पत्तियों को सुखा देते है। आवरण पर काले धब्बे बनते है। इस रोग का प्रकोप उपराऊ धान मे कम उर्वरता वाले क्षेत्रों मे मई-सितम्बर माह के बीच अधिक दिखाई देते है। यह रोग ज्यादातर उन क्षेत्रों मे देखने को मिलता है, जहाँ किसान भाई खेतों मे उचित प्रबंधन की व्यवस्था नही कर पाते है। इसमे जड़ के अलावे पौधे के सभी रोगी हो सकते है। इस रोग मे दानों के छिलको पर भूरे से काले धब्बें बनते है, जिससे चावल बदरंग हो जाता है।
रोग नियंत्रण:-
1. बीजों को थीरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) की उग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
  1. रोग सहनशी किस्मों जैसे- बाला, कृष्णा, कुसुमा, कावेरी, रासी, जगन्नाथ और आई आर 36, 42, आदि का व्यवहार करें।
  2. रोग दिखाई देने पर मैन्कोजैव के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए।
  3. अनुशंसित नेत्रजन की मात्रा ही खेत मे डाले।
  4. बीज को बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुआई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए।
  5. खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।
  6. रोगी पौधों के अवशेषों और घासों को नष्ट कर दें।
  7. मिट्टी मे पोटाश, फास्फोरस, मैगनीज और चूने का व्यवहार उचित मात्रा मे करना चाहिए।
2. धान का झोंका (ब्लास्ट) रोग/ प्रध्वंस (Blast)
Paddy blast diseaseधान का यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है। धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है। पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है। बिहार में मुख्यत: इस रोग का प्रकोप सुगंधित धान मे पाया जाता है।
इस रोग के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों पर दिखाई देते है, लेकिन इसका आक्रमण पर्णच्छद, पश्पक्रम, गांठो तथा दानों के छिलको पर भी होता है। मुख्यत: पत्ती ब्लास्ट, पर्वसंधि ब्लास्ट और गर्दन ब्लास्ट के रूप मे इस रोग को देखते है।
यह फफूँदजनित है। फफूंद पौधे के पत्तियों, गांठो एवं बालियों के आधार को भी प्रभावित करता है। धब्बों के बीच का भाग राख के रंग का तथा किनारें कत्थई रंग के घेरे की तरह होते है, जो बढ़कर कई सेन्टीमीटर बड़ा हो जाता है।
जब यह रोग उग्र होता है, तो बाली के आधार भी रोगग्रस्त हो जाते है, और बाली कमजोर होकर वही से टूट कर गिर जाती है। भूरे धब्बों के मध्य भाग मे सफेद रंग होता है। इस अवस्था मे अधिक क्षति होती है।
गांठ का भूरा-काला होना एवं सड़न की स्थिति मे टूटना, दानों का खखड़ी होना एवं बाली के आधार पर फफूंद का सफेद जाल होना 'नेक राट' कहलाता है। क्षत स्थल के बीच का भाग घूसर रंग का हो जाता है। अनुकूल वातावरण मे कई क्षतस्थल बढ़कर आपस मे मिल जाते है, जिसके फलस्वरूप पत्तियां झूलसकर सूख जाती है। गाँठो पर भी भूरे रंग के धब्बें बनते है, जिससे समुचित पौधे को नुकसान पहुँचता है। तनो की गांठों पूर्णतया या उसका कुछ भाग काला पड़ जाता है, कल्लों की गांठो पर कवक के आक्रमण से भूरे धब्बें बनते है, जिससे गांठ के चारो ओर से घेर लेने से पौधे टूट जाते है। बालियों के निचले डंठल पर घूसर बादामी रंग के क्षतस्थल बनते है, जिसे 'ग्रीवा विगलन' कहते है। रोगी बालियों मे दाने नही बनते है, और बालियाँ सड़े भाग से टूट कर गिर जाती है। लीफ ब्लास्ट में पत्तियों पर राख के समान स्लेटी रंग का केन्द्रीय भाग एवं भूरे रंग के किनारों वाले बड़े शंक्वाकार अथवा ऑंखों की आकृति वाले धब्बें बनतें है।
पुष्पन के समय पर्वसंधि ब्लास्ट मे पर्वसंधि वाला भाग काला हो जाता है, और उस स्थान से पौधा टूट जाता है। रोग की वजह से डंढल बालियों के भार से टूटने लगते है, क्योंकि निचला भाग ग्रीवा संक्रमण से कमजोर हो जाता है। जिससे धान की उपज पर काफी असर देखने को मिलता है। गर्दन ब्लास्ट में, पुष्पगुच्छ के आधार भाग पर भूरे से लेकर काले रंग के धब्बें बन जाते है, जो मिलकार चारो ओर से घेर लेते है, और प्राय: पुष्पगुच्छ वहाँ से टूटकर गिर जाता है। रोग का गंभीर प्रकोप पाये जाने पर द्वितीयक टैकिली और दाने भी संक्रमित हो जाते है। परिणामस्वरूप शतप्रतिशत फसल की हानि होती है।
रोग नियंत्रण:-
  1. बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
  2. नेत्रजन उर्वरक उचित मात्रा मे थोड़ी-थोड़ी करके कई बार मे देना चाहिए।
  3. खड़ी फसल मे 250 ग्राम बेविस्टीन +1.25 किलाग्राम इण्डोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  4. हिनोसान का छिड़काव भी किया जा सकता है। एक छिड़काव पौधशाला मे रोग देखते ही, तथा दो-तीन छिड़काव 10-15 दिनों के अन्तर पर बालियाँ निकलने तक करना चाहिए।
  5. बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  6. रोग रोधी किस्मों जैसे- आई आर 36, आई आर 64, पंकज, जमुना, सरजु 52, आकाशी और पंत धान 10 आदि को उगाना चाहिए।

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